अभिमन्‍यु भारद्वाज 3:07:00 PM A+ A- Print Email
दोस्‍तो ये तो हम जानते हैं किसी भी चीज के दो पहलू होते हैं जैसे कि अगर किसी चीज से किसी को फायदा हो रहा है तो किसी दूसरे को उससे फायदा अवश्‍य हो रहा होगा उदाहरण के तौर अगर हम कोरोना वायरस की बात करेें तो एक तरफ जहॉ पूरी मानव जाति इससे परेशान है वहीं पृक्रति को इससे बहुत बडा फायदा हो रहा है तो आइये जानें किसको हुआ कोरोना वायरस से फायदा - Know who benefited from the Lockdown

जानें किसको हुआ लॉकडाउन से फायदा - Know who benefited from the Lockdown

जी हॉ दोस्‍तो कोरोना वायरस का प्रकृति को बहुत बडा फायदा हुआ है जहॉ पहले प्रदूषण के कारण हमें आसमान तक साफ नजर नहीं आता था वहीं हम असमान और भी नीला नजर आने लगा है मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण में भी भारी गिरावट देखी जा रही है भारत के बडे शहर जैसे मुम्‍बई, दिल्‍ली, कोलकाता जैसे शहर जहॉ आपको हर वक्‍त वाहनों की आवाज और चारों और प्रदूषण का धुंआ नजर आजा था वो सभी शहर अब पूरी तरह से शांत हैं शहर पूरी तरह साफ हो चुके हैं हवा की गुणवत्ता का स्तर अच्‍छा हो चुका हैै लॉकडाउन के दौरान कुछ इलाकों में 0-50 तक हवा की गुणवत्‍ता पहुॅॅॅच चुकी है आम दिनों में यह स्तर 100 से 150 के बीच रहता है केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन लागू होने से पहले और लॉकडाउन के बाद इन शहरों में प्रदूषण के लिये जिम्मेदार कारक तत्वों के ग्राफ में खासी गिरावट दर्ज की गयी है इनमें सबसे ज्यादा राहत एनसीआर के तीन शहरों दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम को मिली है इन शहरों में लॉकडाउन के दौरान हवा की गुणवत्ता से जुड़े सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक जयपुर में पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा में 55 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गयी है हम आपको बता दें डीज़ल वाहनों से जो धुआं निकलता है उनमें हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा सूक्ष्म कार्बनमयी कणिकाएं मौजूद रहती हैं पेट्रोल चलित वाहनो के धुएं में कार्बन मोनो ऑक्साइड व लेड मौजूद होते हैं। लेड एक वायु प्रदूषक पदार्थ है डीज़ल चालित वाहनों की अपेक्षा पेट्रोल चालित वाहनों से प्रदूषण अधिक होता है एक अनुमान के अनुसार, एक मोटरगाड़ी एक मिनट में इतनी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन खर्च करती है जितनी कि 1135 व्यक्ति सांस लेने में खर्च करते हैं डीज़ल एवं पेट्रोल चालित वाहनों में होने वाले दहन से नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड भी उत्पन्न होती है जो सूर्य के प्रकाश में हाइड्रोकार्बन से करके रासयनिक धूम कुहरे को जन्म देते है। यह रासायनिक धूम कोहरा मानव के लिए बहुत खतरनाक है सन् 1952 में पांच दिन तक लन्दन शहर रासायनिक धूम कुहरे से घिरा रहा, जिससे 4000 लोग मौत के शिकार हो गये एवं करोड़ों लोग हृदय रोग तथा ब्रोंकाइटिस के शिकार हो गये थे

हवा हुई साफ

वाहनों की बढ़ती संख्या और पेड़ों की घटती संख्या के कारण प्रदूषण के प्रकार और उसकी तीब्रता में हर वर्ष बढ़ोत्तरी होती जा रही थी दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण बहुत खतरनाक स्तर पर पहुँच चुका था जो अब कम हो चुका है वायु में मौजूद PM 2.5 और PM 10 कणों में कमी आयी है पीएम यानि PM यानी पार्टिकुलेट मेटर जो कि वायु में मौजूद छोटे कण होते हैं PM को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) या कण प्रदूषण (particle pollution) भी कहा जाता है, जो कि वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं. कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है इसमें धूल, गर्द और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. PM10 और 2.5 धूल, कंस्ट्रदक्शेन की जगह पर और कूड़ा व पुआल जलाने से ज्यादा बढ़ते हैं हम आपको बता दें कि हवा में PM2.5 की मात्रा 60 और PM10 की मात्रा 100 होने पर ही हवा को सांस लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पढ़ सकते हैं. उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है, इसके परिणामस्वरूप समय से पहले मृत्यु भी हो सकती है. क्या आप जानते हैं कि PM2.5 का स्तर ज्यादा होने पर धुंध बढ़ती है और साफ दिखना भी कम हो जाता है. इन कणों का हवा में स्तर बढ़ने का सबसे बुरा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है.

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थ सिस्टम साइंस विभाग के प्रोफेसर मार्शल बर्क ने बताया कि चीन में कोरोना वायरस की वजह से लगे लॉकडाउन की वजह से करीब 50 से 75 हजार लोग प्रीमैच्योर मौत (समय से पहले) से बच गए यानी प्रदूषण का स्तर अगर पहले जैसा रहता तो इस साल के अंत तक इतने लोग प्रदूषण से ही मर जाते हैं

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है प्रदूषण से होने वाली बिमारीयॉ जैसे स्ट्रोक, हृदय रोग, और श्वसन से एक वर्ष में लगभग 4.2 मिलियन लोगों की जान चली जाती है स्टैनफोर्ड के पृथ्वी-प्रणाली विज्ञान विभाग में एक प्रोफेसर, मार्शल बर्क के विश्लेषण के अनुसार इस महामारी केे कारण लगे लॉगडाउन के करण अब तक लगभग 4000 छोटे बच्चों और 73000 बुजुर्ग वयस्कों की जान बचाई गयी है

छोटे भूकंपों का पता लगाना हुआ आसान

पृथ्वी की गति का अध्ययन करने वाले शोधकर्ता भूकंपीय शोर में गिरावट की रिपोर्ट कर रहे हैं पृथ्वी की पपड़ी में कंपन जो परिवहन नेटवर्क और अन्य मानवीय गतिविधियों के बंद होने का परिणाम हो सकता है वे कहते हैं कि अब भूकंप डिटेक्टर छोटे भूकंपों को देख सकते हैं और ज्वालामुखीय गतिविधि और अन्य भूकंपीय घटनाओं की 
निगरानी के प्रयासों को बढ़ावा दे सकते हैं

सडक पर दिखें लगे जंगली जानवर

चंडीगढ़ के सेक्टर 5 में ट्रैफिक बंदी के चलते तेंदुए दिखाई देने लगे हैं वहीं कोझीकोड की सड़क पर में 27 मार्च को मालाबार सिवीट नाम की बिग केट दिखाई दी मघ्‍यप्रदेश के बैतूल में हाईवे पर हिरणों के झुंड के बेखौफ आराम फरमाते दिखे मुंबई महानगर के मरीन ड्राइव पर भी समुद्र में डॉल्फिन अठखेलियां करती नजर आ रही हैं ओडिशा के समुद्र तटों पर ओलिव रिडले कछुए चहलकदमी करते दिखाई दे रहे हैं

ओजोन की परत को फायदा

ओजोन परत की खोज फ्रांस के दो वैज्ञानिकों फैबरी चालर्स और होनरी बुसोन ने की थी ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है ओजोन परत आमतौर धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है ये पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमें ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है ओजोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है क्योंकि ये हमें सूरज की पराबैंगनी किरणों से बचाती है ओजोन लेयर में छेद हो गया है इस बात का पता सबसे पहले दुनिया को 1980 में चला था सूरज की परबैंगनी किरणें अगर सीधे हम पर पड़ें तो स्किन कैंसर, मोतियाबिंद हो सकता है यहां तक कि हमारा इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो सकता है ओजोन लेयर इन किरणों को अवशेषित कर लेती है इसीलिए इसे पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहा जाता है अगर इसे नुकसान पहुंचता रहा तो हमारा अल्ट्रा वॉयलेट किरणों की वजह से होने वाली बीमारियों से बचना मुश्किल हो जाएगा

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